किताबें बोल पातीं तो बतातीं
हमने वह नहीं कहा है
जो तुम पढ़ लेते हो
शब्द कह पाते तो कहते
मेरा वह अर्थ नहीं
जो तुम समझ लेते हो
दिल जनता है
कि किताबों में क्या लिखा है
मुश्किल यह है कि
दिमाग़ वह नहीं पढ़ना चाहता
जो सही अर्थों में
कहा और लिखा जा रहा है
उसे तो सिर्फ़ वह पढ़ने की आदत है
जो उसके अनुकूल हो .
हास्य व्यंग्य - सटायर
इंसान को भीतर तक झकझोरती कविता
हास्य व्यंग्य सटायर
आप सभी ने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में नियमित व्यंग्य पढ़ते हुये मुझे असीम आशीर्वाद प्रदान किया है । मैं आप सभी का सच्चे मन से आभारी हूँ । न्यूज पेपर के व्यंग्य कॉलम में शब्द सीमा रहती है नतीजा यह कि व्यंग्य को संक्षेप में कहना पड़ता है । आज कहीं भी , किसी भी ऑफिस में चले जायें स्थिति यह है कि हर जगह छल प्रपंच छाया हुआ है , ऐसा लगता है कि ईमानदार व्यक्ति के लिए इस समाज में कहीं भी काम करने के लिए जगह ही नहीं है । इतना ही नहीं धूर्तता का आलम यह है कि ईमानदार और परिश्रमी कर्मचारी पूरे साल मेहनत करते हैं और धूर्त ऑफिसर व कर्मचारी प्रपंच कर सारे लाभ पर डाका डाल देते हैं । हम लोगों को सब कुछ होते हुये दिखाई देता है लेकिन परिस्थियाँ कुछ ऐसी रच दी जाती हैं कि आंखो से दिखाई देता सच , झूठ नजर आने लगता है और एक काल्पनिक झूठ किसी चमत्कार की तरह सच के समांतर खड़ा कर दिया जाता है । इस शॉर्ट टर्म काल्पनिक झूठ का सच बस इतना होता है कि वह सेन्सेशन पैदा कर मनचाहे लोगों को लाभ पहुंचा कर विलुप्त हो जाये । इस उपन्यास की पृष्ठभूमि यही शॉर्ट टर्म काल्पनिक झूठ है जो सम्पूर्ण कार्पोरेट जगत की हकीकत बन गया है । सटायर की दुनियां से चल कर व्यंग्य उपन्यास तक का सफर अनजाने ही मुझे गहरी संतुष्टि की अनुभूतों प्रदान कर रहा है ।
पटोले– “सर याद किया!”
“हूँ”
सर प्लीज
“वो तुम्हारा असिस्टेंट क्या कह रहा था , घोड़े का अंडा नहीं होता !यही ट्रेनिंग दे रहे हो उसे , ऐसे बन्दे ट्रेंड करोगे तो कंपनी डुबा दोगे . ” साहब ने कहा ।
“सर अभी नया है उसे समझ नहीं है .” पटोले संभालता हुआ बोला ।
“हूँ, समझ नहीं है वह तो ठीक है , पर उसे इतना तो पता होंना चाहिये कि सीनियर से बात कैसे करते हैं, ही इज हाईली इंडिस्प्लिंन परसन.
“सर प्लीज” पटोले ने कहा
“चलो उसे तो प्रोबेशन क्लीयर करते समय देखेंगे, हाँ तुम्हे इसलिये बुलाया है कि ,“घोड़े का अंडा” चाहिये इंतजाम करो और देखो काम जल्दी होंना चाहिये.” बॉस ने गंभीरता से कहा ।
पटोले सिर खुजाते हुये बोला “ सर टाईम तो लगेगा पर , आई विल ट्राई माई बेस्ट . टेंडर देंना होगा स्पेसिफिकेशन बनानी पडेगी और दूसरे प्रोजेक्ट से भी पूछना पडेगा , यह आई मीन घोड़े का अंडा और कहीं प्रिक्योर हुआ है क्या ?वैसे स्टोर में पहले से ही बोल कर रखते हैं कि उसे सेफ रखने के लिये मेथड वगैरह की स्टडी कर ले और सर मेंटिनेंस वालों को भी बोल दीजियेगा कि सेफ हैंडलिंग और आफ्टर पर्चेज सर्विसिंग के बारे में तैयारी कर लें बाद में पिछली बार के ऐंटीक पीस डिलवरी वाले हैंडलिंग की तरह लफडा नहीं होंना चाहिये .”
“हूँ” साहब के माथे पर बल पड गये , “बाई द वे वह ऐंटीक पीस डिलिवरी की हैंडलिंग का क्या किस्सा है .” साहब की जिज्ञासा बढ़ गई ।
बॉस के इतना पूछते ही पटोले की बांछे खिल गई , उसे पता था अब वह अपनी लफ़्बाजी के बल पर साहब को पूरे इंप्रेशन में ले लेगा ।
एक दिल छूती रचना
A coverage of of my Book by News Channels
About My Book
Cricket & Critic
रोज इस उम्मीद में
उठता हूँ ,
आज दुनियाँ बदल जाएगी ।
रोज दुनियाँ बदल जाती है ,
उम्मीद नहीं ।
सब से बड़ा लॉकर
इंसान का दिल है ,
जहां वह
ख्वाबों की जागीर
सम्हाले बैठा है
तुम
एक और दुनियां बना लोगे
तो क्या होगा
तुम्हारे पास
वो दिल ही नहीं
जिसमें
दुनियां बसा करती है
फिर वही
जमीन जायदाद
और बड़े छोटे के झगड़े होंगे
जिसे तुम
एक नई दुनियां का नाम दे दोगे
वह कभी सिकंदर
कभी चंद्रगुप्त
कभी अशोक
कभी अकबर तो
कभी एलिजाबेथ की सत्ता होगी
आगे बढ़े तो
अमेरिका की डेमोक्रेसी दोगे
चाइना का कम्युनिज्म
या यूरोपियन कंट्री की
फेक प्रॉस्पेरिटी
इस धरती की उम्र बदलेगी
दुनियां नहीं
क्योंकि तुम्हारे पास
वह दिल नहीं है
जिसमें
एक खूबसूरत दुनियां बसा करती है।
कभी कभी कुछ कह देना किसी की जिंदगी बदल देता है ,
जैसे बगल में कोट की हुई बात जो मुझे कुछ कर गुजरने
को कहती है " Aap Bahut Accha Kalam Likhenge"
तेरे होंठो की प्यास
मेरे आंसुओं में डूबी है
क्या जीने की तमन्ना
इसी को कहते हैं ।
मैं टेलिस्कोप लगा
आसमां में
कोई तारा ढूढ़ने नहीं उतारा
मेरे जिंदगी का ख्वाब
तेरी पलकों पे जा के ठहरा है।
मेरी दौलतों के ठिकाने
बैंक बैलेंस , प्रॉपर्टी और लॉकर में
नहीं मिलते
मेरी जिंदगी की दौलत
इक तेरी
मुस्कुराहट में कैद होती है।
मैं हसरतों को
तेरे कदमों में छोड़ देता हूँ
कभी तो तेरी निगाह
आसमां से उतर
धरती पे मचल जायेगी।
उतर जाऊंगा किसी रोज
तेरे जिस्म में
ख्वाब के मानिंद
और पलकों पे
तेरी नींद ठहर जाएगी ।
तेरी आँखों में ख्वाब आएंगे
जैसे हसरतों का मेला हो ,
मेरी सांस , मेरी धड़कन
मेरे जिस्म की लहरें
हर पल
तेरे बिस्तर से लिपट के सोते हैं।
मैंने माना
तुम्हारे दिल ने
तुम्हें तड़पने से रोक रखा है
उस से कह दो ,
मेरे जिस्म को
अपने अहसास से बाहर कर दे
क्यों वो हर रात
नींद आने से पहले
मेरा दरवाजा खटखटा देता है।
तुम्हारा जिस्म
अगर इस तरह
खुद को पूरा समझ लेता है
तो मेरे सोए हुए जिस्म को
तुम्हारे दिल की धड़कनें
थरथराती क्यों हैं
क्यों वो धड़कनें
मेरी धड़कन के
ख्वाब पूछ जाती हैं ।
किसी ने मेरी जिंदगी को
अधूरी किताब कहा
और मैं खुश हो गया
अभी मेरी जिंदगी की
आधी किताब
लिखी जानी बाकी है
मैं खत्म कहां हुआ हूँ ।
न जाने कितना प्यार किया मैंने
और अब मैं
सिर्फ उनकी खोज में हूँ
जो मुझे प्यार कर सकें
क्योंकि
अपने तमाम प्यार के बाद भी
मुझे जिंदगी में वो लोग नहीं मिले
जो मुझे प्यार करते हों।
हो सकता है
बहुत से लोग मुझे प्यार करते हों
और मैं
उन्हें न जानता हूँ।
जिन्हें मैं बेइंतहा प्यार करता हूँ
वो मुझे प्यार नहीं करते
न जाने क्यों
यह अहसास बढ़ता जाता है
क्योंकि
मुझे लगता है
उनका प्यार सलेक्टिव है
मेरी पर्सनालिटीे के
सिर्फ उस हिस्से से
जो उन्हें पसंद है
क्योंकि
जब मेरे व्यक्तित्व के हिडेन कैरेक्टर
अपना अस्तित्व प्रकट करते हैं
मुझे प्यार करने वाले
उस हिडेन चरित्र को देख डर जाते हैं
घबरा जाते हैं
जबकि मैं
अपने व्यक्तित्व की कमियों के साथ ही
पूर्ण होता हूँ
वही मेरा अस्तित्व है
सिर्फ खूबसूरत दिखाई देता
चेहरा और चरित्र नहीं ।
हसरतें , तमन्ना और ख्वाब
खिलौने हो गए हैं
और जिंदगी की हकीकत
इतनी बड़ी हो चुकी है कि,
वह इन खिलौनों को
पहचान जाती है।
बड़े हो जाना गुनाह नहीं है
बड़े हो कर अपने एडोलोसेन्स
के अहसास का खो देंना ,
जिंदगी मुश्किल बना देता है।
तुम्हें देख कर "मैं "
इस मुश्किल जिंदगी से
बाहर आ जाता हूँ ,
बस इतनी सी बात है
तुम्हारी चाहत में ,
जो मुझे
तुम्हारे साथ बनाये रखती है।
ज्यादा नहीं
बस अपने भीतर
खोये हुए
एक सच्चे इंसान को खोज लेना ही
तुम्हें पाना है।
समंदर में कहाँ होती हैं
" लहरें "
तेरे सीने में ढूँढने निकला हूँ .
मेरे सीने में थीं
"लहरें "
ख्वाब की कहानी
यही तो कहती है .
"लहरें "
कबूतर के फड़फड़ाने से उठा करती हैं
उठती हैं
"लहरें "
तेरी आँखों के ठहर जाने से ,
"लहरें "
उठती हैं ,
तेरे होंठों के लरज़ जाने से ,
लहरों को उठते देखा है ,
तेरे कदमों के मचल जाने से ।
मैंने देखा है लहरों को
अपने सीने में उठते
बस एक तेरे तड़प जाने से ।
यह जिंदगी एक पल सही ,
एक दिन सही जितनीं है ,
उतनी ही सही, है तो ।
यह मौत की तरह कम से कम किसी सीक्रेट मिशन की
यात्रा तो नहीं है
जो अपना पता तक नहीं देती ।
और इसीलिए
हर इंसान
तमाम मुश्किलों और अड़चनों के बाद भी
सदियों से ,
हर बार टूट कर बिखर जाने के बाद भी,
तुझे जीने का हौसला रखता है ।
उसे पता है
ज्वार भाटे से उठी लहरों के थमने के बाद
पहाड़ों पर चट्टानों के फिसलने के बाद ,
ज्वालामुखी के लावे के बहने के बाद
हर तूफान को एक दिन थम जाना है ।
और जिस दिन
तूफान थमेगा
यह जो रुक हुआ वक्त है
अपने भीतर
ढेर सारे गुजरे हादसों की कहानी समेन्टे
उठ खड़ा होगा ।
क्योंकि वक्त का हौसला
महाभारत , कलिंग
और पुरू व सिकंदर के युद्ध भी नहीं तोड़ पाए ।
हां हम लोगों के बीच से ही ,
वे लोग , जो आगे जाएंगे ,
नए वक्त को ,
इंसान के हौसले की , कहानी सुनाएँगे ।
भले ही ईमानदारी अजायब घर में
रखी हुई कोई चिड़िया हो,
न जाने क्यों मुझे अहसास होंने लगा है,
ढेर सारी जीत ,
जो इस चिड़िया के बिना हासिल होती हैं
वह अधूरी हैं।
और जो हार इस चिड़िया को
अपने भीतर रख कर मिलती है
वह कींमती
यहां
ऊपर से ले कर नींचे तक
हर कोई मुझे सुधारना चाहता है,
सिर्फ इसलिए
क्योंकि ,
मैं उसकी तरह नहीं,
अपनी तरह
जिंदगी जी रहा हूँ।
बात सिर्फ इतनी है कि
उसे अपना रास्ता सही और मेरा रास्ता गलत दिखता है,
और फिर अचानक
उसे मेरा रास्ता सही दिखने लगता है लेकिन,
वह अपने रास्ते को गलत कैसे स्वीकार करे,
क्योंकि तब उसे
अपने पूरे जीवन की सार्थकता समाप्त होती दिखाई देगी और बस यहीं
अहंकार जन्म लेता है,
अपने "गलत" खुद को ,
अपने ही भीतर ,
सही सिद्ध करने के लिए।
अब इस अहंकार को पूर्ण करने में ,
भले ही ढेर सारे
निर्दोष मार दिए जाएं।
क्योंकि
एक बार अपनी निगाह में ,
"निर्दोष" व्यक्ति सही साबित हो गए तो ,
अपने भीतर ,
स्वयं के दोषी होंने के विचार को स्वीकृति प्रदान करनी होगी ,
और तब
"आत्मग्लानि" से
बचने का मार्ग नहीं होगा।
मेरे भीतर
अपने होंने
और सांस लेने की
उम्मीद जगा दो ,
मैं एक बार फिर
जिंदगी जीने का
"ख़्वाब "
देखने निकला हूँ ।
इक तमन्ना
जो उठती है
तुझे पाने की
मेरे कहने से आगे निकल जाती है
छू लेती है तेरे होंठ पी लेती है नशा तेरी आँखों का
डूब जाती है तेरे बदन की खुशबू में
ढूढती है कस्तूरी गन्ध
तेरी साँसों को थाम लेती है
एक तमन्ना जो उठती है तुझे पाने को
मुझे सिर्फ वो कहां रहने देती है जो मैं हूँ ,
और तब तुम भी तो वही नहीं रहते जो अमूमन हुआ करते हो ,
क्योंकि तब बदल जाता है तुम्हारा चेहरा
उठती है लाली तुम्हारे गालों पर
बढ़ जाती है दिल की धड़कन
कुछ लफ्ज आते हैं होठों तक
और होंठ बस फड़फड़ा के ठहर जाते हैं
एक तमन्ना जब उठती है मुझे पाने की।
कवि
मदिरा के उफान को
धधकती हुई भट्ठी पर
उसके उतरने और ठंडा होंने से पहले ही पी सको
तो समझो , किसी कविता को जिया है तुमने , उस विशेष क्षण में
और ऐसे ही क्षणों को मिला कर , जीवन बना सको , तो समझो , किसी कवि को जन्म दिया है तुमने ,
हाँ , इसके बाद भी तुम कवि के निर्माता नहीं हो
जन्म देने और निर्माण करने में फर्क होता है
हाँ तुम महुए के उस वृक्ष की तरह हो , जिसे खुद भी मदिरा की तासीर का दर्द नहीं पता ,
एक कवि तासीर होता है सिर्फ तासीर
न कड़ाहे को पता है , न भट्ठी को और न ही महुए को ,
कि उस ने उबाल कर बनाया क्या है ।
यहाँ तक कि शराबी को भी मदिरा की तासीर का दर्द नहीं पता होता
मुझे मारना हो तो
AK 47 ले कर आना और
टेररिस्ट की तरह गोली मारना
ऑफिशियल
मेन्टल टॉर्चर
झेलने के बाद
अब मेरे भीतर
रिवाल्वर से
न मरने की
इम्युनिटी पैदा हो गई है ।
Copyright © 2024 India - All Rights Reserved.
Powered by GoDaddy
We use cookies to analyze website traffic and optimize your website experience. By accepting our use of cookies, your data will be aggregated with all other user data.