मन का संघर्ष भी सुकून लेने नहीं देता कभी... नारी मन की थाह को भला कहां समझ पाया है कोई. सोन चिरैया एक ऐसी ही स्त्री की मार्मिक कहानी है, जो तमाम सुख-सुविधा में कैद अपने अंतर्मन को टटोल रही है. वह आज़ाद होना चाहती है, अपनी पहचान बनना चाहती है. प्रस्तुत है मशहूर लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव की कहानी ‘सोन चिरैया’. कहानी से जुड़ी आपकी टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा. पैसा अगर ख़ुशी ख़रीद सकता, तो वह भी ख़ुश होती, सोन चिरैया के कैदी-सी उदास नहीं. और आज जो आज़ादी उसे मिली है, क्या उसकी क़ीमत यह चन्द सिक्के चुका पाएंगे? पैसा वही, जो लॉकर में सोने के हार और कंगन के रूप में कैद हैं, जो डायमंड के नेकलेस के रूप में गले में फंदे-सा चुभता है. और वही पैसा, जिसकी वह ग़ुलाम की तरह रखवाली कर रही है. रात-दिन जिसके लिए उसका पति पिछले पच्चीस साल से कभी इंग्लैड, कभी स्विटज़रलैंड भागता रहता है. वही पैसा जिसके लिए उसका बेटा घर छोड़कर अमेरिका चला गया और जिसके लिए उसकी बेटी ने एयर होस्टेस बन किसी एनआरआई से शादी कर ली. वह इसी उधेड़बुन में उलझी रहती, अगर उसे अपने आसपास शोर न सुनाई देता. बच्चे उसे घेरे खड़े थे. कुछ उसे छूकर देख रहे थे. कोई और दिन होता तो उसे ज़ोर का ग़ुस्सा आता. वह भाग खड़ी होती इस जगह से, लेकिन नहीं आज उसे लग रहा था कि उसके भीतर कुछ टूटने की प्रक्रिया चल रही है. (कहानी की एक झलक)
मेरी सहेली के स्टोरी सेगमेंट में आप सुन रहे हैं कहानी- ‘काहे को ब्याहे बिदेस’. इसके लेखक हैं मुरली मनोहर श्रीवास्तव. भावनाओं से ओतप्रोत नारी मन पर केंद्रित यह कहानी आपको कैसी लगी कमेंट्स करके ज़रूर बताएं.
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हम सभी इतना बिज़ी हैं कि अपनी मन की सच्ची ख़ुशी के बारे में न ही सोच पाते हैं और न ही उसे समय दे पाते हैं. ज़िंदगी मे व्यस्त पलों से कुछ लम्हे मेले में बिताने पर एहसास होता है कि आख़िर हम किस अंधी दौड़ के पीछे भाग रहे थे. प्रस्तुत कहानी मेला इसी ओर हमारा ध्यान आकषिॅत करती है. लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने इसे लिखा भी बेहद भावनात्मक रूप से. मेला ने कहीं न कहीं आपको भी अपने बचपन की तो याद नहीं दिला दी, बताइएगा ज़रूर... “बेटा, तुमने आज मेले के सही अर्थ को समझा है, यदि बाहरी मेले से हम हृदय में उमंग और ख़ुशी के असली मेले को जगा सकें, तो समझो घूमना-फिरना सफल हो गया, वरना पहाड़ पर घूम आओ या शॉपिंग माल में, सब निरर्थक है.” और अब शिखर रामदीन की सरल भाषा में कही हुई बात का ज़िंदगी के मेले के संदर्भ में गूढ़ अर्थ ढूंढ़ने लगा था. (कहानी की एक झलक)
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कुछ अपनी कुछ आपकी बातें , क्लिक करिए विश्वास मानिए हम और आप करीब आते जायेंगे , मज़ा यह कि आप मेरे नहीं इस बहाने अपने दिल के करीब पहुंचेंगे । मेरी कोशिश तो इतनी है कि वह कहूँ जो आप कहना चाहते हैं , वह नहीं जो सुनना चाहते हैं । यक़ीन मानिए मेरे साथ गुजरते हुये आपका दिल आपके साथ होगा । क्योंकि एक दिन जिंदगी ने मुझसे गुजरे हुये लम्हों का हिसाब मांगा और मैंने मुस्कुरा कर कहा ऐ दोस्त बता तो देता मैं तुम्हें एक एक पल का हिसाब , पर क्या करूँ मेरी जिंदगी भावनाओं की अमानत है गणित की किताब नहीं ।
रोज इस उम्मीद में
उठता हूँ ,
आज दुनियाँ बदल जाएगी ।
रोज दुनियाँ बदल जाती है ,
उम्मीद नहीं ।
सब से बड़ा लॉकर
इंसान का दिल है ,
जहां वह
ख्वाबों की जागीर
सम्हाले बैठा है
तुम
एक और दुनियां बना लोगे
तो क्या होगा
तुम्हारे पास
वो दिल ही नहीं
जिसमें
दुनियां बसा करती है
फिर वही
जमीन जायदाद
और बड़े छोटे के झगड़े होंगे
जिसे तुम
एक नई दुनियां का नाम दे दोगे
वह कभी सिकंदर
कभी चंद्रगुप्त
कभी अशोक
कभी अकबर तो
कभी एलिजाबेथ की सत्ता होगी
आगे बढ़े तो
अमेरिका की डेमोक्रेसी दोगे
चाइना का कम्युनिज्म
या यूरोपियन कंट्री की
फेक प्रॉस्पेरिटी
इस धरती की उम्र बदलेगी
दुनियां नहीं
क्योंकि तुम्हारे पास
वह दिल नहीं है
जिसमें
एक खूबसूरत दुनियां बसा करती है।
कभी कभी कुछ कह देना किसी की जिंदगी बदल देता है ,
जैसे बगल में कोट की हुई बात जो मुझे कुछ कर गुजरने
को कहती है " Aap Bahut Accha Kalam Likhenge"
तेरे होंठो की प्यास
मेरे आंसुओं में डूबी है
क्या जीने की तमन्ना
इसी को कहते हैं ।
मैं टेलिस्कोप लगा
आसमां में
कोई तारा ढूढ़ने नहीं उतारा
मेरे जिंदगी का ख्वाब
तेरी पलकों पे जा के ठहरा है।
मेरी दौलतों के ठिकाने
बैंक बैलेंस , प्रॉपर्टी और लॉकर में
नहीं मिलते
मेरी जिंदगी की दौलत
इक तेरी
मुस्कुराहट में कैद होती है।
मैं हसरतों को
तेरे कदमों में छोड़ देता हूँ
कभी तो तेरी निगाह
आसमां से उतर
धरती पे मचल जायेगी।
उतर जाऊंगा किसी रोज
तेरे जिस्म में
ख्वाब के मानिंद
और पलकों पे
तेरी नींद ठहर जाएगी ।
तेरी आँखों में ख्वाब आएंगे
जैसे हसरतों का मेला हो ,
मेरी सांस , मेरी धड़कन
मेरे जिस्म की लहरें
हर पल
तेरे बिस्तर से लिपट के सोते हैं।
मैंने माना
तुम्हारे दिल ने
तुम्हें तड़पने से रोक रखा है
उस से कह दो ,
मेरे जिस्म को
अपने अहसास से बाहर कर दे
क्यों वो हर रात
नींद आने से पहले
मेरा दरवाजा खटखटा देता है।
तुम्हारा जिस्म
अगर इस तरह
खुद को पूरा समझ लेता है
तो मेरे सोए हुए जिस्म को
तुम्हारे दिल की धड़कनें
थरथराती क्यों हैं
क्यों वो धड़कनें
मेरी धड़कन के
ख्वाब पूछ जाती हैं ।
किसी ने मेरी जिंदगी को
अधूरी किताब कहा
और मैं खुश हो गया
अभी मेरी जिंदगी की
आधी किताब
लिखी जानी बाकी है
मैं खत्म कहां हुआ हूँ ।
न जाने कितना प्यार किया मैंने
और अब मैं
सिर्फ उनकी खोज में हूँ
जो मुझे प्यार कर सकें
क्योंकि
अपने तमाम प्यार के बाद भी
मुझे जिंदगी में वो लोग नहीं मिले
जो मुझे प्यार करते हों।
हो सकता है
बहुत से लोग मुझे प्यार करते हों
और मैं
उन्हें न जानता हूँ।
जिन्हें मैं बेइंतहा प्यार करता हूँ
वो मुझे प्यार नहीं करते
न जाने क्यों
यह अहसास बढ़ता जाता है
क्योंकि
मुझे लगता है
उनका प्यार सलेक्टिव है
मेरी पर्सनालिटीे के
सिर्फ उस हिस्से से
जो उन्हें पसंद है
क्योंकि
जब मेरे व्यक्तित्व के हिडेन कैरेक्टर
अपना अस्तित्व प्रकट करते हैं
मुझे प्यार करने वाले
उस हिडेन चरित्र को देख डर जाते हैं
घबरा जाते हैं
जबकि मैं
अपने व्यक्तित्व की कमियों के साथ ही
पूर्ण होता हूँ
वही मेरा अस्तित्व है
सिर्फ खूबसूरत दिखाई देता
चेहरा और चरित्र नहीं ।
हसरतें , तमन्ना और ख्वाब
खिलौने हो गए हैं
और जिंदगी की हकीकत
इतनी बड़ी हो चुकी है कि,
वह इन खिलौनों को
पहचान जाती है।
बड़े हो जाना गुनाह नहीं है
बड़े हो कर अपने एडोलोसेन्स
के अहसास का खो देंना ,
जिंदगी मुश्किल बना देता है।
तुम्हें देख कर "मैं "
इस मुश्किल जिंदगी से
बाहर आ जाता हूँ ,
बस इतनी सी बात है
तुम्हारी चाहत में ,
जो मुझे
तुम्हारे साथ बनाये रखती है।
ज्यादा नहीं
बस अपने भीतर
खोये हुए
एक सच्चे इंसान को खोज लेना ही
तुम्हें पाना है।
समंदर में कहाँ होती हैं
" लहरें "
तेरे सीने में ढूँढने निकला हूँ .
मेरे सीने में थीं
"लहरें "
ख्वाब की कहानी
यही तो कहती है .
"लहरें "
कबूतर के फड़फड़ाने से उठा करती हैं
उठती हैं
"लहरें "
तेरी आँखों के ठहर जाने से ,
"लहरें "
उठती हैं ,
तेरे होंठों के लरज़ जाने से ,
लहरों को उठते देखा है ,
तेरे कदमों के मचल जाने से ।
मैंने देखा है लहरों को
अपने सीने में उठते
बस एक तेरे तड़प जाने से ।
यह जिंदगी एक पल सही ,
एक दिन सही जितनीं है ,
उतनी ही सही, है तो ।
यह मौत की तरह कम से कम किसी सीक्रेट मिशन की
यात्रा तो नहीं है
जो अपना पता तक नहीं देती ।
और इसीलिए
हर इंसान
तमाम मुश्किलों और अड़चनों के बाद भी
सदियों से ,
हर बार टूट कर बिखर जाने के बाद भी,
तुझे जीने का हौसला रखता है ।
उसे पता है
ज्वार भाटे से उठी लहरों के थमने के बाद
पहाड़ों पर चट्टानों के फिसलने के बाद ,
ज्वालामुखी के लावे के बहने के बाद
हर तूफान को एक दिन थम जाना है ।
और जिस दिन
तूफान थमेगा
यह जो रुक हुआ वक्त है
अपने भीतर
ढेर सारे गुजरे हादसों की कहानी समेन्टे
उठ खड़ा होगा ।
क्योंकि वक्त का हौसला
महाभारत , कलिंग
और पुरू व सिकंदर के युद्ध भी नहीं तोड़ पाए ।
हां हम लोगों के बीच से ही ,
वे लोग , जो आगे जाएंगे ,
नए वक्त को ,
इंसान के हौसले की , कहानी सुनाएँगे ।
भले ही ईमानदारी अजायब घर में
रखी हुई कोई चिड़िया हो,
न जाने क्यों मुझे अहसास होंने लगा है,
ढेर सारी जीत ,
जो इस चिड़िया के बिना हासिल होती हैं
वह अधूरी हैं।
और जो हार इस चिड़िया को
अपने भीतर रख कर मिलती है
वह कींमती
यहां
ऊपर से ले कर नींचे तक
हर कोई मुझे सुधारना चाहता है,
सिर्फ इसलिए
क्योंकि ,
मैं उसकी तरह नहीं,
अपनी तरह
जिंदगी जी रहा हूँ।
बात सिर्फ इतनी है कि
उसे अपना रास्ता सही और मेरा रास्ता गलत दिखता है,
और फिर अचानक
उसे मेरा रास्ता सही दिखने लगता है लेकिन,
वह अपने रास्ते को गलत कैसे स्वीकार करे,
क्योंकि तब उसे
अपने पूरे जीवन की सार्थकता समाप्त होती दिखाई देगी और बस यहीं
अहंकार जन्म लेता है,
अपने "गलत" खुद को ,
अपने ही भीतर ,
सही सिद्ध करने के लिए।
अब इस अहंकार को पूर्ण करने में ,
भले ही ढेर सारे
निर्दोष मार दिए जाएं।
क्योंकि
एक बार अपनी निगाह में ,
"निर्दोष" व्यक्ति सही साबित हो गए तो ,
अपने भीतर ,
स्वयं के दोषी होंने के विचार को स्वीकृति प्रदान करनी होगी ,
और तब
"आत्मग्लानि" से
बचने का मार्ग नहीं होगा।
मेरे भीतर
अपने होंने
और सांस लेने की
उम्मीद जगा दो ,
मैं एक बार फिर
जिंदगी जीने का
"ख़्वाब "
देखने निकला हूँ ।
इक तमन्ना
जो उठती है
तुझे पाने की
मेरे कहने से आगे निकल जाती है
छू लेती है तेरे होंठ पी लेती है नशा तेरी आँखों का
डूब जाती है तेरे बदन की खुशबू में
ढूढती है कस्तूरी गन्ध
तेरी साँसों को थाम लेती है
एक तमन्ना जो उठती है तुझे पाने को
मुझे सिर्फ वो कहां रहने देती है जो मैं हूँ ,
और तब तुम भी तो वही नहीं रहते जो अमूमन हुआ करते हो ,
क्योंकि तब बदल जाता है तुम्हारा चेहरा
उठती है लाली तुम्हारे गालों पर
बढ़ जाती है दिल की धड़कन
कुछ लफ्ज आते हैं होठों तक
और होंठ बस फड़फड़ा के ठहर जाते हैं
एक तमन्ना जब उठती है मुझे पाने की।
मुझे अपने ख्वाबों में
जीने की इजाजत दे दो
मैं तुम्हारे पास
तुम्हें छूने की इजाजत नहीं ,
ख्वाब में छूने के एहसास की इजाजत
लेने आया हूँ ।
क्योंकि
तुम्हें बिना इजाजत
ख्वाब में छूना भी
मुझे गुनाह लगता है ।
कवि
मदिरा के उफान को
धधकती हुई भट्ठी पर
उसके उतरने और ठंडा होंने से पहले ही पी सको
तो समझो , किसी कविता को जिया है तुमने , उस विशेष क्षण में
और ऐसे ही क्षणों को मिला कर , जीवन बना सको , तो समझो , किसी कवि को जन्म दिया है तुमने ,
हाँ , इसके बाद भी तुम कवि के निर्माता नहीं हो
जन्म देने और निर्माण करने में फर्क होता है
हाँ तुम महुए के उस वृक्ष की तरह हो , जिसे खुद भी मदिरा की तासीर का दर्द नहीं पता ,
एक कवि तासीर होता है सिर्फ तासीर
न कड़ाहे को पता है , न भट्ठी को और न ही महुए को ,
कि उस ने उबाल कर बनाया क्या है ।
यहाँ तक कि शराबी को भी मदिरा की तासीर का दर्द नहीं पता होता
मुझे मारना हो तो
AK 47 ले कर आना और
टेररिस्ट की तरह गोली मारना
ऑफिशियल
मेन्टल टॉर्चर
झेलने के बाद
अब मेरे भीतर
रिवाल्वर से
न मरने की
इम्युनिटी पैदा हो गई है ।
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